Harihar हिन्दू धर्म में भगवान शिव और भगवान विष्णु के संयुक्त स्वरूप का प्रतिनिधित्व करता है। इस रूप में भगवान शिव और विष्णु का आधा-आधा शरीर होता है। हरिहर की उत्पत्ति और महत्व के पीछे भी धार्मिक और दार्शनिक कथाएँ हैं।
एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, एक समय देवताओं और दानवों के बीच भीषण युद्ध छिड़ा हुआ था। उस समय, देवताओं को दानवों पर विजय प्राप्त करने के लिए भगवान शिव और विष्णु दोनों की कृपा की आवश्यकता पड़ी। लेकिन एक समस्या थी—कुछ देवताओं ने केवल शिव की उपासना की थी, जबकि कुछ ने केवल विष्णु की। इससे देवताओं के बीच भेदभाव उत्पन्न हो गया और वे एक-दूसरे से विवाद करने लगे कि किसकी पूजा श्रेष्ठ है।
इस विवाद को सुलझाने और देवताओं को एकजुट करने के लिए, भगवान शिव और भगवान विष्णु ने हरिहर रूप धारण किया। इस स्वरूप में, भगवान शिव और विष्णु एक ही शरीर में एक साथ प्रकट हुए, जिसमें आधा शरीर शिव का और आधा विष्णु का था। इस रूप का उद्देश्य यह दर्शाना था कि वे दोनों एक ही परमात्मा के दो रूप हैं और उनके बीच कोई अंतर नहीं है।
हरिहर रूप यह संदेश देता है कि शिव और विष्णु की उपासना एक ही लक्ष्य की ओर ले जाती है, और यह कि सभी देवता एक ही सर्वोच्च शक्ति के रूप हैं। इस प्रकार, हरिहर का स्वरूप धार्मिक और दार्शनिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, जो समस्त भेदभावों से ऊपर उठकर एकता और समरसता का प्रतीक है।